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आज तक हम ज़िन्दगी में क्या नहीं झेले / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
आज तक हम ज़िन्दगी में क्या नहीं झेले।
मुश्किलों के संग हम शतरंज भी खेले।।
दण्डवत करते रहे हैं हम सदा उनको।
मान कर अच्छे गुरु हम दण्ड भी पेले।।
हुस्न के जालिम दरिंदे घूमते-फिरते।
लग रहे हैं आशिकों के अब यहाँ मेले।।
बाग में हर फूल भी अब खुश नहीं दिखते।
आबरू को लुट लिये बाबा सहित चेले।।
अब कहाँ जांऊँ किसे दुखड़ा सुनाऊँ मैं।
खा रहे छिलके हटा कर ये सभी केले।।