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आज नहीं तो कल / नीता पोरवाल
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आज नहीं तो कल
वे बना सकते हैं तुम्हें भी
दादरी और बनारस!
इतनी हैरत से मत देखो
तुमसे, हाँ, तुम्हीं से मुख़ातिब हूँ मैं
क्योंकि
मचानों पर बैठकर
देख लिया है उन्होंने तुम्हारा सिरफिरापन
किस आसानी से
बना लेते हो धूर्त पाखंडियों को
तुम अपना ईश्वर
भेंट स्वरुप अर्पित कर देते हो
उनके कदमों में
तुम अपना विवेक
जानते हैं वे
उनकी ‘हुआ-हुआ’ सुनते ही
तुम मुंह उठाये भाग उठोगे
लाठी और बल्लम लेकर
अपने ही साथियों के रक्त से
रंग डालोगे माटी को तुम
फूंक डालोगे अपने ही हाथों
एक रोज तुम अपना वतन