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आज बणखड की हवा खाण नै जी कर रह्या सै मेरा / मेहर सिंह

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वार्ता- सावित्री सत्यवान के साथ जंगल में जाने की आज्ञा लेने के लिए अपने सास ससुर के पास जाती है वहां जाकर वह चुपचाप खड़ी हो जाती है। संकोच के कारण कुछ कह नहीं पाती। इस पर उसके ससुर पूछते हैं कि बेटी तुम यहां किस काम से आई हो कहो इस में शर्माने की कोई बात नहीं तो सावित्री अपने ससुर के सामने प्रार्थना करती है

फळ लेणे की इच्छा करकै चाल पड़्या सुत तेरा
आज बणखंड की हवा खाण नै जी कर रह्या सै मेरा।

पति चल्या जाणे का मन मैं कोए भी मलाल कर्या ना
चाह में भर कै टहल करी कदे मन्दा हाल कर्या ना
खाण पीण ओढण पहरण का मनै कुछ भी ख्याल कर्या ना
इतने दिन आई नै हो लिए कोए भी सवाल कर्या ना
आज उमंग में भर कै लागण दो म्हारा बणखंड कै म्हा डेरा

पृथी जल और अगन बिजली साहाकार दर्शाऐ
चक्ष गिरण सोसत बााी करतब शुद्ध बणाऐ
शोडस कला प्राण पति नै निराकार गुण गाऐ
बड़े बड़े सिर मार चले गये करणी का फळ पाऐ
और किसै का दोष नहीं दिया काळ बली ने घेरा

हवन की खातर लकड़ी लावै थारै लिए फळ ल्याता
और काम की खातिर चलता तै रोक भी लिया जाता
इस का रोकणा ठीक नहीं यो धर्म के प्रण निभाता
हाथ जोड़ कै आज्ञा ल्यूं सूं तुम दुःख सुख के दाता
इसमें मेरा दोष नहीं दिया करड़ाई नै घेरा।

राजा बोले आज बहू तूं इतणी क्यूं शरमाई
आज तलक तनै कुछ ना मांग्या जिस दिन तै तूं आई
मनै तै बहु आज्ञा दे दी तूं कर मन की चाई
मेहर सिंह ने कथा सावित्री की सोच समझ कै गाई
इतणी कह कै चाल पड़े कर दिल का दूर अंधेरा।