भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज ये दिन जो वाँ ढला होगा / अदनान कफ़ील दरवेश
Kavita Kosh से
आज ये दिन जो वाँ ढला होगा
मेरी अम्मा को कुछ गिला होगा।
देखो-देखो ज़रा तो बढ़ करके,
कोई इक गुल तो वाँ खिला होगा।
हम जो सपने वो चुन के लाए थे,
किसने उनको जला दिया होगा।
हाय ! इस ज़हर के जज़ीरे में,
कोई तो फूल बो रहा होगा।
जान लो हो चुके अदू के वे,
अब न मिलने का हौसला होगा।
आज रोएँगे हम लिपट करके
आज कुछ ऐसा सिलसिला होगा।
तुझपे तो कुफ्र के भी फ़तवे हैं,
अब न कोई तेरा ख़ुदा होगा।
याद रक्खेंगे अहले-दिल तुझको,
जब भी 'दरवेश' तू जुदा होगा।
(रचनाकाल: 2016)