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आज वह नहीं है / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
आज वह नहीं है
घर उदास है
अलगनी पर लटके हैं गंदे कपड़े
फ़र्श पर जमी है धूल
मेज़ पर पड़े हैं तीन सूखे गुलाब के फूल
गंदे बर्तनों का ढेर है रसोई
बुझी हुई अंगीठी में राख भरी हुई है
शराब की खाली बोतल लुढ़की हुई पड़ी है
अचार की शीशी का ढक्कन खुला हुआ है
माचिस की तीलियों और बीड़ी के टोटों से
फ़र्श पूरा भरा है
इधर-उधर बिखरी पड़ी है किताबें
वहाँ कोने में आज का अख़बार मरा पड़ा है
आज वह नहीं है
उदास हूँ मैं
1988 में रचित