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आज विधाता से आओ थोड़ी फरियाद करें / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

आज विधाता से आओ थोड़ी फरियाद करें।
भूल गया जो उस भोले बचपन को याद करें॥

खेतों की मेड़ों पर चलना
तरु पर चढ़ जाना ,
ताल तलैया डुबकी लेना
मंदिर में आना।
नीर क्षीर सा प्यार और अनबन को याद करें।
भूल गया जो उस भोले बचपन को याद करें॥

संझबाती के दीप और वो
खिली चांदनी रात।
चना मटर या आम टिकोरे
मौसम की सौगात
आओ फिर उस गाँव गली आँगन को याद करें।
भूल गया जो उस भोले बचपन को याद करें॥

काका चाचा भैया ताऊ
बंधी हुई थी चीर।
स्वप्न हुए सब रिश्ते नाते
यह कैसी तकदीर।
बैठ मरुस्थल में फिर उस सावन को याद करें।
भूल गया जो उस भोले बचपन को याद करें॥

बहनों के हाथों की राखी
ममता की छाया।
सोंधी गन्ध लिए मिट्टी की
खेतों की काया।
धूल पसीने से लथपथ जीवन को याद करें।
भूल गया जो उस भोले बचपन को याद करें॥

क्रूर समय के हाथों खिंच कर
चला गया जो दूर।
भुला नहीं पाते हम उसको
हैं कितने मजबूर।
तुलसी पौधे पर माँ के वन्दन को याद करें।
भूल गया जो उस भोले बचपन को याद करें॥