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आज हर गली में दंगे हो रहे हैं / सांवर दइया
Kavita Kosh से
आज हर गली में दंगे हो रहे हैं।
लिबास उतार लोग नंगे हो रहे हैं।
किस उम्मीद से लिपटें दौड़कर गले,
बांहों में फांसी फंदे हो रहे हैं।
जब मांगी दवा तो दुत्कारा गया,
अब लाश के लिए चंदे हो रहे हैं।
सिक्कों की एवज़ ले रहे ज़िंदगियां,
मतलब के मारे अंधे हो रहे हैं।
बनाकर अपना, फिर करेंगे हलाल,
देख, लोग कितने गंदे हो रहे हैं।