ज़िन्दगी का एक दिन भी
सहनशील विकास के
इतिहास से कम नहीं!
एक क्षण भी तो
नहीं एकांत!
बिंदु सारे
बन चुके हैं केंद्र;
कट रहीं
केवल परिधियाँ
दिशा-हीन
अशांत.........!
[१९५०]
ज़िन्दगी का एक दिन भी
सहनशील विकास के
इतिहास से कम नहीं!
एक क्षण भी तो
नहीं एकांत!
बिंदु सारे
बन चुके हैं केंद्र;
कट रहीं
केवल परिधियाँ
दिशा-हीन
अशांत.........!
[१९५०]