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आतंकबादी / ककबा करैए प्रेम / निशाकर

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आतंक केर कोरामे खेलाइत छै हिन्दुस्थान
हिन्दुस्थान
जकरा आइयो गुमान छै
अपन सनातन संस्कृति आ सभ्यता पर
एक-एक कऽ
एकर सांस्कृतिक पहिचान
मेटैबाक प्रयासमे लागल छै।
लागले रहैत छै आतंकवादी।

आतंकवादीकें नेह नहि छै कनियो
घर-परिवार
आ नहि कोनो सर-कुटुमसँ
ओकर सरो-कुटुम फराके बनि जाइत छै
कोनो मोजर नहि दैछ ओ
आतंके लेल
जीबै दैं, मरै छै।

मुदा,
जीबै कहाँ छै
अंतमे मरिते छै।