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आततायी जल हटाना चाहते हैं बुलबुले / विनय कुमार
Kavita Kosh से
आततायी जल हटाना चाहते हैं बुलबुले।
हाँ, हवा के साथ जाना चाहते हैं बुलबुले।
कसमसाती झील की सारी कसावट तोड़कर
ताज़गी जल में घुलाना चाहते हैं बुलबुले।
मृत मिथक की जलपरी के गलफड़े से छूटकर
हर किसी के हाथ आना चाहते हैं बुलबुले।
आपने मिटते हुए देखा मगर बनते नहीं
बारहा बन कर दिखाना चाहते हैं बुलबुले।
हाथ होते तो क्षितिज छूकर दिखा देते ज़रूर
सिर्फ पानी पर न छाना चाहते हैं बुलबुले।
कानवालों से गुज़ारिश है कि साहिल तक चलें
राज़ पानी के बताना चाहते हैं बुलबुले।
हो गए तालाब बूढ़े और बूढ़ी आदतें
जिंदगी भर गुड़गुड़ाना चाहते हैं बुलबुले।
आज भूली भैरवी गाती हुई इस भोर में
क्या पता किसको बुलाना चाहते हैं बुलबुले।