भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आत्मघाती आत्मा / विपिन चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूल से भरा एक मौसम
बारिश के बीच से गुज़र,
साफ़-सुथरा होने के बाद
फिर से धूल में लोट-पोट हो जाता है

एक नायिका
एकतरफा प्रेम में डूब कर
नायक द्वारा फेंके हुए सिगरेट के टुकडे उठा कर
अकेले में पीने लगती है
और फिर उसी सरूर में अपने सबसे अज़ीज़ सपनों को बारी-बारी से कन्धा दे
दिया करती है

प्रेम की सीली यादों को
नाजुक ओस सी
सावधानी से रूई पर उठा लेने के बाद
आंसुओं की गंगा- जमुना में बहा देना
प्रेम का सिलसिलेवार विधान है

हमारी आत्मा
उन्हीं छुटी हुई चीज़ों से दोस्ती करने को आगे करती है
जो हमारे हाथ लगने से रह गयी है
और एक दिन
आत्घाती बन
हमें ही चोट पहुंचाने लगती है

जब यह बात कोई यह बात जान लेता है
तब तक वह अपनी सारी जमा पूँजी
अपनी आत्मा के हवाले कर चुका होता है