आत्मन् को तेज़ प्यास सताती थी
पीने की इच्छा से सम्मुख सागर होता था
जब तक सागर का विचार था
आत्मन् का पीना शुरू नहीं होता था
पीने की प्यास कहीं भीतर दुबकी हुई रह जाती थी
पीना समुद्र में बेचैन डूबता-उतराता
ऊभ-चूभ करता था
ऐसे जब तक उसे समुद्र का स्मरण था
पीना रुकस हुआ था
रुके हुए पीने के साथ बेचैन प्यास रुकी हुई थी
किसी क्षण आत्मन् को
समुद्र का स्मरण नहीं रह जाता था
स्मरण में जल का भी स्मरण नहीं रह जाता था
प्यास, प्यास की इच्छा भी भूल जाया करती थी
तत्क्षण उस महाविस्मरण में
आत्मन् का पीना शुरू हो जाता था !