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आत्मन् के गाए कुछ गीत (रुकना) / प्रकाश
Kavita Kosh से
आत्मन् तेज़ी से चलकर एक जगह आया था
आते ही रुक गया था
रुककर उसने पाया कि वह रुका नहीं था
फिर उसने पाया कि वह रुक गया था
कुछ देर वह अपने रुकने को याद करता रहा
फिर उसे रुकना भी याद नहीं रहा
गति की विस्मृति में उसमें
एक प्राचीन स्मृति जगने लगी थी
उस स्मृति में वह
अपने होने की सुगंध के जगत में
वापस लौटता हुआ दीख रहा था !