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आत्मन् के गाए कुछ गीत (सुनना) / प्रकाश
Kavita Kosh से
आत्मन् को सुनना अच्छा लगता था
वह जन्मों से सबको सुनता आता था
वह अनन्त समय से अनन्त अनन्त
और अनन्त समय को सुनता था
सब सुन-सुनकर उसके हिये में
हूक उठती रहती थी
उस निरुपाय हूक से एक कहन उभरती थी
वह कहन जाने कैसे अनकहे में बदल जाती थी
फिर उस करुण अनकहे को वह
अनन्त समय तक सुनता रहता था
उसका अनकहा उसके भीतर
जल की तरह हिलता था
वह जल के उस गाने को सुनता था
एक दिन स्वर-उत्सुक आत्मन् जल के पास गया
कि जल में गिर, पिघलकर विलुप्त हो गया !