इस आम की गुठली को
मुझ से लगवाते हुए
पिता ने कहा था
यह पेड़ अगर फल-फूल जाए
तो मैं समझूँगा कि तेरे हाथ में शगुन है ।
फले-फूले हुए उसी आम के पेड़ की एक शाखा पर
हे पिता! तूने फाँस लगा ली,
पिता और पेड़ के मन में भी
आज कौन से विचार आते होंगे ?
००
तेरी रोटी लेकर
जब पहली बार वह खेत में आई तब
युग-युग का तू भूखा, व्याकुल
आवेगपूर्वक टूट पड़ा उस पर
उसी पेड़ के नीचे वह आज खड़ी है
सारी घटना साक्षात है
उसके भीतर का वह व्याकुल गड्ढा
अब किसी से भी बुझ न सकेगा ।
००
उसके माथे पर
लाल सिन्दूर की ज्वाला थी जो
उसका डर ख़त्म हो जाने के कारण
अब ग़लत ताक़तें खेत में घुसेंगी ।
धान को रौदेंगी
आवारा जानवरों की हिम्मत बढ़ेगी
कुएँ के पानी के झरने अब चुराए जाएँगे,
आँखों पर पलकें खींच
उसे कुछ दिन तक यह सब तो देखना-सहना पड़ेगा ।
मूल मराठी से अनुवाद : सूर्यनारायण रणसुभे