आत्महत्या / पवन चौहान
जब मन भर जाता है
किसी चीज से
इस भागमभाग, दौड़-धूप से
हर कड़वी बात की कड़वाहट से
बहुत ज्यादा मिठास
और लोगों की घृणित नजरों से
तो शायद मौत भी डरा नहीं पाती
उस वक्त
डरने लगती है वह खुद ही
इस आक्रामक रुख से
सोचता हूँ
क्या जरुरी हो जाता है यह सब करना
परिवार को अकेला छोड़ना
और सबको को दे जाना एक जोरदार धोखा
पर मैं यह भी जानता हूँ
होता है यह अपने अंदर का डर ही
जो अनायास ही निकल आता है बाहर
किसी ब्रेकिंग न्यूज पर हुए खुलासे-सा
और खिसका देता है कदम अपने पथ से
जैसे उतरती है कोई ट्रेन पटरी से
किसी खतरनाक हादसे को अंजाम देती हुई
पर यह मत सोचना
आत्महत्या कर बच जाओगे तुम
अपनी जिम्मेवारियों से
अपने आप से
यही जिम्मेवारियां बुलाएंगी तुम्हे एक फिर भी
दुत्तकारेंगी तुम्हे
और इस जन्म के अधूरे कार्यों का बदला लेगी
तुम्हारे अगले जन्म तक
तुम आओगे
तुम्हे आना ही होगा
नाक रगड़ते
घीसटते हुए
अपनी पिछली गलतियों पर
हाथ जोड़ते
माफी मांगते
पर तुम्हे कोई नहीं पहचानेगा तब
पहचानेगीं सिर्फ तुम्हारी जिम्मेवारियां ही
पिछले जन्म के दुखों का
पल-पल का हिसाब करते हुए
तुम अकेले लड़ोगे फिर
इस दुनिया की जंग
अपनी छूटी पिछली
हारी हुई अंतहीन जंग
इस जंग के डर से क्या तुम
एक बार फिर करोगे आत्महत्या?