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आत्माव्लोकन / शमशाद इलाही अंसारी

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शुभकामनाएँ भेजते हो
उपदेश देते हो
प्रसन्न रहने का ।

सदैव कामना करते हो
दूसरों की ख़ुशियों के लिए
किन्तु, कभी आत्माव्लोकन किया है ?
स्वयं अपने को अपने से मिलवाया है ?

तुम कहते हो, तुम दुख़ के सागर हो
सुख मिलन तुम्हारे समक्ष
मात्र स्वप्न में ही सम्भव है
तुम अपने को अधूरा कहते हो
क्यों समझते हो अक्षम स्वयं को ?
तुम स्वयं खुश क्यों नहीं रह सकते ?

क्यों देते हो प्राथमिकता
शारीरिक अपंगता को ?

मैं पूछता हूँ तुमसे
क्या तुम्हारा अन्तर-मानव भी अपूर्ण है ?
मैं कहता हूँ तुमसे,
देखो अपने भीतर
वहाँ एक सम्पूर्ण आत्मा है
कई मार्ग हैं इससे मिलने के
पहचानों इसे
इसे जीवित रखो ।

जो तुम होना चाहते हो
कोई असंभव कार्य नहीं ।
यह लक्ष प्राप्य है
इसके लिये मात्र
दृढ निश्चय ही आवश्यक है

सोचो भला, स्वयं निराश व्यक्ति
बुझे दीपक भाँति
कैसे प्रकाश दे सकता है ?
कैसे दे सकता है वरदान
आश्वासन, शुभ-कामनाएँ
दूसरों को सलाह
सुखी रहने की?


रचनाकाल : 13.02.1988