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आत्म-दाह / मुकेश चन्द्र पाण्डेय
Kavita Kosh से
काश के मेरे एक हाथ में पिस्तौल होती
और दूसरे में ६ गोलियां,
मैं सबसे पहले क़त्ल कर देता अपने आत्म विश्वास को,
उम्मीदों की कनपट्टी पर नली रख ट्रिगर दबा देता,
तीसरी से आस्था को मार देता,
चौथी से अपनी सभी अपेक्षाओं को
व पांचवी से ख़त्म कर देता भविष्य की सम्भावनाओं को।
एक-एक करके
अपने पांच हम सायों की हत्या
कर चुकने के बाद अब
हवा में छोड़ देता आखरी गोली..................
और इस तरह अपने पहले ही प्रयास में
सफलतापूर्वक कर देता "आत्म-दाह"
क्योंकि दुनिया की कोई भी लघु कथा इतनी लघु नहीं हो सकती
जितनी कि ज़िन्दगी,
पैदा हुए, बढ़ने भर के लिए,
बढ़ गए और मर गए.... !!