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आदत बुरी / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
हर वक़्त चिढ़ना,
चिढ़कर झगड़ना—
आदत बुरी है, ये आदत बुरी।
ख़ुश रहने का है
बस एक जादू,
ग़ुस्से पर अपने
रखना जी क़ाबू,
पल-पल उबलना
धम्म-धमक चलना—
आदत बुरी है, ये आदत बुरी।
धीरज नहीं हो तो
हो जाती गड़बड़,
जीवन की गाड़ी
करती है खड़-खड़ ,
औरों की सुनना न,
अपनी ही कहना—
आदत बुरी है, ये आदत बुरी।