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आदत / हरीश करमचंदाणी

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देखना एक दिन
क्या गुल खिलाएगी तुम्हारी यह आदत
अगर छूटी नहीं तो कहीं के ना रहोगे
ना रहने दोगे हमें भी
छोड़ी ना जो यह आदत
बचेगा ना कोई दोस्त
खैर दुश्मनों की फेहरिस्त तो काबिले रश्क होगी
अपने तो बेशक हो ही जायेंगे पराये
आईना भी मुँह मोड़ लेगा
अकेले भी रह जाओगे
इसका भी मत रखना यकीन
अब भी संभल जाओ
और छोड़ दो यह आदत
सच बोलने की