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आदमियों के / केदारनाथ अग्रवाल

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आदमियों के

जेब कतर लेते हैं

बढ़े-चढ़े मूल्यों के उपन्यास

आँख से पढ़ कर

दिल और दिमाग से

भोगना पड़ता है संत्रास


(रचनाकाल :26.11.1968)