भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमी के आदमी हाय बा खा रहल / चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही'
Kavita Kosh से
आदमी के आदमी हाय बा खा रहल
कइसन रात दिन बा जा रहल
काँट से माली लगावत नेह बा
गम इहे जे फूल बा मुरझा रहल
भूख के मारे अँधेरा छा रहल
आदमी जे चान से आगे बढ़ल
स्वार्थ में सैतान के सरमा रहल
खा रहल बाटे जरह ई जान के
मौत के पगचाप नगिचा आ रहल
मीड़ से कट के अकेला हो गइल
चोट अपने आप बा सहला रहल