भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमी के तलाश में / मनाजिर आशिक़ हरगानवी
Kavita Kosh से
निश्चल बुद्धि
आरू समाधि ताला रोॅ पहिचान की छेकै
आतंक, दंगा आरू लूट
हम्में हर बेरि आपनोॅ प्रश्न केॅ
स्प्रिंग जैहनोॅ वानि केॅ
छोड़ि दै छियै
प्रश्नोॅ में पड़लोॅ बल
कुच्छु कम होय जाय छै
मजकि ओकरोॅ लम्बाई
कुच्छू आरू बढ़ी जाय छै
आरू हम्में दर्पणोॅ में फँसलोॅ
आकाष केॅ देखै छियै
तबेॅ सोचै छियै
हम्में एक वर्गमूल छेकां
आपनोॅ खप्पड़-खप्पड़ में
एकेक ब्रह्माण्ड अवततिरत छै
एक-सें-अनेक
आरू एक सें समग्र अतिरेक तक लेॅ
विस्तार दै केॅ
आरू आकाश केॅ जोड़ी केॅ
यै लेली हमरा चाहि
मनवाणी आरू कर्म सें
कपटरहित रहै केॅ ।