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आदमी के लिए / महमूद दरवेश / विनोद दास
Kavita Kosh से
उन्होंने उसका मुँह कपड़ा ठूँसकर बन्द कर दिया
उसके हाथ मृतकों की चट्टान से बाँध दिए
और कहा — हत्यारा
उन्होंने उसका खाना, उसके कपड़े और झण्डे छीन लिए
उसे मुज़रिमों वाली काल-कोठरी में डाल दिया
और कहा — चोर
उन्होंने हर एक बन्दरगाह से उसे खदेड़ दिया
उसकी जवान महबूबा छीन ली
फिर कहा — रिफ्यूजी
हवालात हमेशा नहीं बने रहेंगें
न ही ज़ंजीरों की कड़ियाँ
नीरो मर गया, रोम आज भी बाक़ी है
वह अपनी उदास आँखों से लड़ रहा है
और गेहूँ की पकी बालियों से गिरे दानों से
पूरी घाटी भर जाएगी
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास