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आदमी मजबूर है बिकने के लिए / केदारनाथ अग्रवाल
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चाहे कम में बिके
या अधिक में
आदमी मजबूर है बिकने के लिए
न बिकना मौत है-
बिकना जीवन
रचनाकाल: १७-१०-१९६५