भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमी लौटकर नहीं आते / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
वसन्त चला जाएगा
चला जाएगा वसन्त फिर लौटने के लिए
अगले साल ऐसे ही शरद भी
वक़्त पर फिर से वापसी के लिए ।
पर मैं जाऊँगा जब भी लौट नहीं पाऊँगा
फिर से ।
लौटते हैं मेघ, घनघोर बरसने के लिए
प्यासी नहीं रहेगी धरती ।
चली जाएगी हिम और फिर लौटेगी
एक दिन ।
बस, मैं नहीं लौटूँगा, एकबारगी जाने के बाद ।
सुबह चली जाती है
और फिर लौटती है ।
दिन जाता है और फिर आता है
बारी आने पर ।
रात जाती है और लौट आरी है फिर
दिन ढलने पर ।
सिर्फ़ आदमी —
आदमी जाते हैं तो
लौटकर नहीं आते ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना