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आदमी वह ख़ूब मालामाल है / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
आदमी वह ख़ूब मालामाल है।
देखने में जो कि खस्ता हाल है।
देखता आया हूँ सालों साल से,
बिन समस्या कौन गुज़रा साल है।
उसके बाहर सत्य का ही बोर्ड है,
जिसके अंदर रिश्वतों का जाल है।
सोना चाँदी है किसी के पास में,
कोई जीवन मर रहा कंगाल है।
टूटे शीशे और गिरी दीवार है,
हाल भी घर का मेरा बे हाल है।
है ग़ज़ब कि रिश्ते नाते टूटते,
लगता है कि सारा जग जंजाल है।
किस तरह होगा परिवर्तन बता,
जब यहाँ जनता बजाती झाल है।