भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी / अनुपमा तिवाड़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह देख रहा था
आदमी को,
सही जगह पर पूँछ हिलाते हुए,
और मन ही मन
हीनभावना का शिकार हो रहा था
काश! उसके भी पूँछ होती
तो उसके भी शरीर का संतुलन बन गया होता
यूँ तो पूँछ का बीज
उसके नर्म मिट्टी से बने शरीर में था या नहीं,
उसे खबर नहीं
लेकिन उसे इतना पता है कि
मौसम की शुरूआती गर्म हवाओं ने कुछ ऐसा रंग दिखाया
कि उसके शरीर में पूँछ का बीज होता तो
इन हवाओं के चलते कहाँ अंकुआ पाता?
साइंस कहता है
पूँछ,
शरीर का संतुलन बनाने के काम आती है
उसे अब समझ में आ रहा है
कि उसका शरीर इतना लड़खड़ाता क्यों है?