आदर्श / कर्मानंद आर्य
कम उम्र के वे लोग
जो तलवे चाटकर अमरपद पा गए
हमारे आदर्श नहीं हो सकते
मक्खियों की तरह
सत्ता का शहद बनाने वाले
कूकुरों की तरह एक टुकड़े पर लोट जाने वाले
सरकार की भाषा में मुस्कराने वाले
हमारे आदर्श नहीं हो सकते
हमें तो फौलाद पसंद है
जंग लगी तलवारें हमारा आदर्श नहीं हो सकती
जिन्दगी में जो रुई की तरह धुने गए
धुनाई से रेशे में भर ली आग
वे हमारे आदर्श हैं
वे हमारे आदर्श हैं जो देवदार की तरह खड़े रहे ऊँचाई पर
कभी घाटियों से नहीं डरे
आँधियों से टकराहट मोल ली
जिन्होंने चाटुकारों पर थूक दिया
अपनी राह स्वयं बनाई
वे ही हमारे नायक हैं
उनके सम्मान में सिर स्वयं ही झुक जाता है
दो मिनट नहीं
कई जन्मों तक खड़े रहने का मन करता है
उनके सम्मान में
चाटुकारों से जाकर कह दो
अनीति और अन्याय किसी की बपौती नहीं होती
फिर वह चाटुकारों की कैसे हो सकती है
वे जल्दी पहचाने जायेंगे
जो प्रतिभा नहीं ‘लार’ के बल पर जीते
और राज भोग रहे हैं राजधानी में