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आदर के आसन, आराम के सेज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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आदर के आसन, आराम के सेज,
तोरा खातिर नइखे, छोड़ दे लोभ
सब छोड़ के मगन मने आगे बढ़
पथ पर बाहर जल्दी निकल।
चल भाई चल, सभे एक साथ चल,
एक साथ बाहर निकल।
जे हरदम अपमानित भइल बा
आज ओकरे घरे चल।
निंदा मिले त गहना बना के पेन्ह ले
काँट मिले त कंठहार बना ले
अपमान मिले त माथ झुका के ले ले।
दीन-दुखी के घर जहँ बा
उहईं के माटी पर माथा टेक दे।
त्याग के खाली बरतन ले के
आज आनंद रस से भर ले।