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आदिम यज्ञ / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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अनादि काल से होता रहा सिलसिला
एक रहस्यमय उपचार बन गया
दोनों आमने-सामने थे
नज़र चुराते हुए
एक-दूसरे को भाँप रहे थे
उनके बदन पर कपड़े नहीं थे,
क्योंकि कपड़ा होना अश्लील होता।
फिर उन्होंने एक-दूसरे को देखा
भरपूर।
वहाँ ख़ामोशी छाई हुई थी
उन्हें लग रहा था
वे एक घने जंगल में हैं
सभ्यता से
बिल्कुल-बिल्कुल दूर।
और उन्हें लगा
दूर कहीं नगाड़े बज रहे हैं
जिनकी आवाज़
लगातार
नज़दीक आती जा रही है
नज़दीक आते-आते
धड़कन बनती जा रही है।
उन्हें पता था
इसके बाद
वो, वो नहीं रह जाएगी
वो, वो नहीं रह जाएगा
एक अजीब-सी सिहरन
जिसके चलते वे खो जाना चाहते थे
और खो जाने के लिए
सिर्फ़ एक-दूसरे का जिस्म था।

और वे खो गए।