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आधा जीवन / महेश उपाध्याय
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कड़ी धूप में आधा जीवन
राहगीर की तरह जिया है
प्यास लगी है दर्द पिया है
मुझे छोड़ कर बारी-बारी
कुहनी मार बगल से झटपट
गुज़र गई हर तेज़ सवारी
यह मेरी क़िस्मत की ख़ूबी
सूरज डूबा शाम न डूबी
तब सोता हूँ —
जब थकान ने सुला दिया है
कहीं थकाया, कहीं उठाया
किसी एक गहरे काँटे ने
आधी-आधी रात जगाया
नाप दिए पथ टेढ़े-मेढ़े
गर्म हवा के सहे थपेड़े
जोड़-जोड़ में टीस भरी है
पसली-पसली में दुखिया है