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आधी रातै आँख मींड कें उठीं कनकनी बउआ / महेश कटारे सुगम
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देली ग़ज़ल
आधी रातै आँख मींड कें उठीं कनकनी बउआ
लालटेन के उजयारे में चलीं बीनवे मउआ
खुँटी<ref>धोती के सिरे</ref> चढ़ा लई टाँगन ऊपर पीछें काँच<ref>धोती को पीछे खुरसना</ref> लगा लई
एक हात में पिरिया लै लई ओइ में धरौ गुटउआ<ref>छोटी टोकरी</ref>
टायर की चप्पल पाँवन में काँसे<ref>एक धातु</ref> के हैं तोड़र<ref>पाँव का गहना</ref>
हातन में पीतर की चुरियाँ नईंयाँ मांग भरउआ
अध् रत्ता सें जगत कनकनी दुफर चढ़े घर लौटै
भर कें पिरिया<ref>टोकरी</ref> मउआ ल्यावै नईंयाँ कोउ कमउआ
सुगम रात भर बीच डाँग<ref>जंगल</ref> में बउआ चलत फिरत है
भूत ,परेत,शेर ,और चीता नईंयाँ कोउ डरउआ
शब्दार्थ
<references/>