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आधी रात / हो ची मिन्ह
Kavita Kosh से
सोते हुए सभी चेहरे
लगते हैं निश्छल
गुण-दुर्गुण लोगों के
जगने पर खुलते हैं
होते नहीं किसी में
जन्मजात गुण-अवगुण
शिक्षा से ही अक्सर
वे तमाम मिलते हैं