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आधुनिक संस्कार / शम्भुनाथ मिश्र

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जीवन भरि बापकेँ जे भोजन करौलक नहि,
मरलापर बेटा जयबारी करबैत अछि।
चटकन आ थापड़ उठौना जे कयने छल,
मरलापर बापक स्मारक बनबैत अछि।
दगबा लय लोहा जे धिपले रखैत छलय,
मरलापर सोनाकेर औंठी बँटैत अछि।
एक चुरु पानिलय बेलल्ला छल बाप जकर,
मरला पर पोखरिमे तर्पण करैत अछि।

धन्य थिक समाज एहन धन्य एहन पुत्र रत्न,
जकरासँ खान-पान गप-सप रखैत अछि।
बहिष्कार करितै से बाँचल समाजे नहि,
मानव विवेकहुँकेँ लज्जित करैत अछि।