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आधुनिक स्त्रीगण ५ / कामिनी कामायनी

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आदेस लऽ विदेशमे
पतिक गृह प्रदेशमे
आएल अछि देबएले सुख
चाही ओकरो डगरा भरि सुख।
प्रताड़णा वा लांछना
कटु तिक्त वेदना केँ ताप मे भस्म करि/
तखन ई कोन जिंदगी ?
सिनेहकेँ सिनेहसँ
कर्तव्यकेँ कर्तव्यसँ
प्रेमकेँ प्रेमसँ सींचब तँ बाजत बाँसुरी
कुरुक्षेत्र ने बनए छत देवाल सँ घेरल जगह
प्रयास इहै रहै
सभ ठाम हो रोशनी।
नहि वीभत्स रूप हो
वसन्ते वसंत हो सदा
कर्तव्यक अधिकारक सूली पर
नहि चढ़ए पड़ैक।
 संकुचित विचार पर पद प्रहार करि रहल
नब जुगक, नब कुसुम, नब चेतनासँ भरल।
बातरसक दर्दसँ
लोथ बनल सौस लेल बेकल बनल ओ ताकि रहल
बातरसक दबाइ
ससुरक मोतियाबिंद जोहि रहल बाट ओकर
देखाबक छै सम्पूर्ण खेत खरिहान
समस्याक जा नहि समाधान
ताधरि नै ओकरा विराम
सम्पन्न करब छै होमवर्क एतबै ओकरा भान छै।
कॉलेजक प्रांगण हो
वा घरसँ फराक कतौ
चिंतन विशाल छै
हटेबाक अंधकार छै
धरती स्वर्ग बनै
बूनै छै सपना जे
आधुनिक समाजक रचनामे लागल ओ
ओकरा कत्तऽ पलखति छै
सुनबा के आलोचना।