कोई भी नहीं
पहचानता मुझे
नहीं जानती
अराजक भीड़ भी
जो निरंतर
जपती रहती है
पेट या फिर
अधोस्थित अंगों के
मूलमंत्र ही
अवकाश कहाँ है
इतना उसे
ठहरकर थोड़ा
अरण्य मध्य
विरक्त साध्वी हेतु
कुछ क्षण दे
और यह पूछे कि
आनन्द कैसे मिला?
कोई भी नहीं
पहचानता मुझे
नहीं जानती
अराजक भीड़ भी
जो निरंतर
जपती रहती है
पेट या फिर
अधोस्थित अंगों के
मूलमंत्र ही
अवकाश कहाँ है
इतना उसे
ठहरकर थोड़ा
अरण्य मध्य
विरक्त साध्वी हेतु
कुछ क्षण दे
और यह पूछे कि
आनन्द कैसे मिला?