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आनन्द / उंगारेत्ती
Kavita Kosh से
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धूप की इस बाढ़ के ताप में
जलता मैं
स्वागत करता हूँ
मधुर फल जैसे इस दिन का
आज रात
विलाप करूंगा मैं
रेगिस्तान में भटकती
किसी हूक की तरह ।