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आपका निज़ाम ये चलन आम हो रहे हैं / सांवर दइया

आपका निज़ाम ये चलन आम हो रहे हैं।
जूतों के जोर फ़र्शी-सलाम हो रहे हैं।

सभी जानते हैं फंसेंगे लोग बे क़सूर,
गवाह तो यहां मुफ्त बदनाम हो रहे हैं।

तवारीख में भी नहीं कहीं ऐसी मिसाल,
अंधेरे में भी रोशनी के नाम हो रहे हैं।

मुक़ाबले में जो थे सड़ रहे सीखचों में,
जमहूरी-सल्तनत, इंतख़ाब हो रहे हैं।

आलमे-आफ़ताब तो है चिरग़े-सहरी,
आपके चिराग़ अब आफ़ताब हो रहे हैं।