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आपकी खुशुबुएँ उड़ा लाए / विनय कुमार
Kavita Kosh से
आपकी खुशुबुएँ उड़ा लाए।
खोलकर खिड़कियाँ हवा आए।
नींद मेरी तरह उसे आए
ख़्वाब में कोई आप सा आए।
चांदनी रात ही मुनासिब थी
चांद की चिटि्ठियाँ जला आए।
ऐसा करिए कि उगे खेतों में
और खलिहान में दुआ आए।
कल कहाँ थे कहाँ पता है हमें
आज कैसे कहें कहाँ आए।
बात आयी गयी नहीं होगी
बात बच्चों को हम बता आए।
हम ख़ुदा की तलाश में खोए
अब हमें खोजने ख़ुदा आए।
हम उड़ा आए पतंगें तो लगा
हक़ हवाओं पे हम जता आए।
आग हाक़िम ने बरामद कर ली
पर उसे फूस में छिपा आए।
उफ़ ये रफ़्तार, उठाए पर्दे
और दीवार भी उठा आए।
वो हुक़ूमत चलो बहाल करें
लोग मांगें तो रास्ता आए।