भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपना पति के देखि रोई-रोई बात-करे / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपना पति के देखि रोई-रोई बात-करे
अनका पती के देखि हँसेली ठठार के।
माथा खजुआवे बाजूबंद झनकावे अरू
अँखिया लडावे चले छतिया उघार के।
सांस ओ ननद के तऽ रोजे इ उपास राखे
चूल्ही का चलवना से मारे ली भतार के।
कहत महेन्द्र इहें लच्छन करकसा के
भेजेली रसातल ई त ऽ कुल परिवार के।