भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपने पुकारा, आ गए हम लीजिए / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपने पुकारा, आ गए हम लीजिए।
ठेठ तक चलेंगे अब साथ हम लीजिए।

आइये, अब अगले सफ़र की बात करें,
तय हुए सफ़र का न कोई ग़म कीजिए।

कुछ देर और हो बेशक, चलेंगे साथ,
हांफ गये तो यहां थोड़ा दम लीजिए।

आपकी हंसी में साथ दिया था हमने,
खुशी से लेंगे, आपके सब ग़म दीजिए।

कल जो होगी भोर, आपकी होगी,
मिटना है तो आज मिटते हम लीजिए।