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आपन कदम से कदम / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
आपन कदम से कदम तू मिला के चलऽ,
नेह के फूल सगरो खिला के चलऽ।
आग घिरना से कहियो बुझा ना सके,
बात एतना समझ में जे आ ना सके,
सारे दुश्मन के गरवा लगा के चलऽ।
नेह के फूल सगरो.......
आज नफरत के सगरो लगल आग हे,
गाँव जरते रहल लोग रहल भाग हे,
तू अहिंसा के नदिया बहा के चलऽ।
नेह के फूल सगरो......
दीन-दुखिया-बेचारा के साथी बनऽ,
जेकरा चाही मदद तू संघाती बनऽ,
लोर ढरकत हई ओकरा सुखा के चलऽ।
नेह के फूल सगरो....
बाँट अमृत जे अपने हलाहल पियल,
उहे जिनगी बा जे दोसरा ला जियल,
रहिया सुनसान दियवा जला के चलऽ।
नेह के फूल सगरो....