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आपन दिन कइसे बिताईं / विनय राय ‘बबुरंग’

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रउवा ई बतलाई
कि हम आपन गांव में
दिन बिताईं त कइसे बिताईं?
दयादन क मत पूछीं हाल
ई अइसन कइले बानऽ बेहाल
जे बुडुवा अस
पानी में हमार गोड़ खीचें
आ धोबी अस हमरा के
घाट पर फीचें।
बाह रे दयाद बाह!
दयाद केहू होखे
त अइसने दयाद होखे
खाली उनका बिरादरी क
वोट से मतलब होखे
फिर मतलब निकल गइला क बाद
केहू से मतलब ना होखे।
हाय! हाय रे! बिरादरीबाद
ई सभके क देई बरबाद
अइसन बिरादर सातो जनम लिहला पर
केहू के भुलइलो न मिला
ऐ भाई
त रउवा ई बतलाईं कि
गांव में आपन दिन
बिताईं त कइसे बिताईं?
कुछ गांव के ईमानदार लोग
 अक्किल के भंडार लोग
बांस बान्हि-बान्हि के
माटी भा ईंटा क
दुआरी पर बेदी जगा-जगा के
सीढ़ी बना-बना के
रसता करत बानऽ जाम
अउरी सुन लेईं
कुछ लोगन क काम
चकरोड जोते में त


एकदम माहिर
सुनऽ तालऽ हो जवाहिर!
आ कुछ लोग त पंचाइत क
 गढ़ही भर-भर के
करत बानऽ दखल
तनि देख लेईं रउवा इनकर सकल
हमरा नइखे बुझात
कि
गांव में कतहीं आग लगला पर
पानी मिली त कहवां मिली
आ बरसाती पानी
गांव में क आखिर
केकरा दलान में गिरी त गिरी
ए भाई!
त रउवा ई बतलाईं कि
हम गांव में आप दिन
बिताईं त कइसे बिताईं?

अब पंचाइत क जमीन
खाली नकसे में लउकी
रउवा अइसन कविता सुन के
जिन चिहुकीं
एकर पंचाइत केहू पंच
करी त कइसे करी
ओट दायें क बायें
हो जाइ तब
हाय! हाय! रे पंचन क राज
जें पंच मँुहदेखी
आ पइसा लेके पंचाइती करे
अइसना हम पंचन पर
कइसे करी विसवास
अइसने पंच त गांव के
कइ रहल बानऽ नास
ए गांव में केहू सही
नायक नइखे
जे बा कूल क कूल
खलनयके जनम लेले बाटे
जेकरा करनी से कपारे आजु
का से का ना
गुजरात बाटे
ए भाई!
त रउवा ई बतलाईं कि
हम गांव में आपन दिन
बिताईं त कइसे बिताईं।।


जहिया सरकारी रासन क
 दुकान पर
चीनी मिलत होई भ तेल
केवनो कारन बस
ओह दिन ना पहँुच के
दूसरे दिन गइला पर
अइसन देखे के मिलेला खेल
कि
तुरन्त दिमाग हो जाला फेल
का त
चीनी तेल गायब?
आहि हो दादा
ई का कइलऽ
बतावऽ ए साहब
रउवा के हईं
हमरा कोटा के
बेचे वाला नाजायज?
फिर सोचे लगलीं

मन ही मन
का करीं ए भइया
ई आदत से लाचार बा
जहवां देखऽ तहवां आजु
चोरन क बाजार बा
जेही क चलती आजु
ओहि क गुलजार बा
ए भाई
त रउवा ई बतलाईं कि
हम गांव में आपन दिन
बिताईं त कइसे बिताईं?

धन्य हईं हे गांव केक
नारद भगवान लोग
अइसन ई मान फूंकऽ
कि
घरे-घरे घूमि-घूमि
अगिये लगावं लोग
रोज हम मनाइलां
अइसना घर फोरन से
जनि होखे भेंट

ना त झगड़ा करवा देई
कपार फोरवा देई
फिर अदालत पहँुचवा देई
कहवां मिली पइसा कि
लड़ब फौदारी
जे करत बा दुई
पइसा क चौकीदारी
बंटवा देई आंगन
खबरदार ए भइया
जिये ना देई ई
अगिया लगावन
ईहे बा कारन कि
गांव क गली-गली
लागे भकसावन
अगर इहे रही हालत त
आयी ना जिनिगी में
देखे बदे सावन
ए भाई
त रउवा ई बतलाईं कि
हम गांव में आपन दिन
बिताई त कइसे बिताईं?


ई सभके बा मालूम कि
केतना उपकार करंऽ
गांव के महाजन
जीयत बा अजुवो
जइसे दुसासन
जे परेला पाला
छोड़ा देई भूसी
बर्तन बेचा जाई
नथुनी बेचा जाई
तबहू दियाई ना
महाजन क सूदी
बाह रे ओकर बुद्धि
रोज रोज करेला
गनेस जी क पूजा
हाथ जोड़ मनावेला
एक सौ क दू सौ
दू सौ क चार सौ
होति सबेरे हो जा
गांव में उनकर

अइसन दहाड़ बा
भइया हो जीयल अब
हमनी के पहाड़ बा
जेकरा कपारे आजु होई महाजन
करत कपार होई
दिन रात चन चन
इहे कुल झेलला से
सांस टंगाइल बा
मन घबड़ाइल बा
आखिर हम गांव छोड़
जाईं त कहवां जाईं
ए भाई
त रउवा ई बतलाईं कि
हम गांव में आपन
दिन बिताईं ता कइसे बिताईं?


चाहे गांव क
छोटका पंच होखंऽ
ई खीर खाये वाला
मजनू लोग
मुर्गा क टांग चबाये वाला
हाकीम लोग
भेस बदल-बदल के
झंडा बदल बदल के
झूठी बोली बोल के
देस क सेवा खातिर
अइसन अइसन बनवले बानऽ
आपन आपन दल
हमके त बुझाते नइखे कि
बगुला भगत ह
कि रावण क दल?
असल
बात ई बा कि
अइसना लोगन से अब
जनि करीं आसा
ई लोकतंत्र क गंगा
अब गंगा ना रहि गइल
लोग एकरा के
बना देले बा करमनासा
कइसे बदली पानी
कइसे बदली धार
जब एगो हनुमान
धारा बदले खातिर
लंका फूंकि दिहलन
त हमनी अस आजु
लाखों लाख लोग
आजु हनुमान बनि के
आजाद बनि के
भगत बनि के
खुदीराम बोस बनि के
एक संग होके
भेद-भाव भुला के
लड़ भिड़ के
एक जुलुम के खिलाफ
देखइतीं जा आपन आपन बल
तब कहीं जाके
मिली सबके मुक्ति
रोटी-कपड़ा-मकान
त ए भाई
कि
ई बतलाईं
कहिया ले हम गावन में
मुक्ति खातिर बिगुल बजाईं?