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आपुन मरन त्यौहार / प्रेम शर्मा
Kavita Kosh से
बरसों के बाद
मिला
अपना
बिछुड़ा यार,
घिर-घिर आई
बादली,
उमड़ा
मेघ-मल्हार।
सुन-सुन
धुन
मगन हुआ
सहजानन्दी
चोला,
मुखरित
अन्तर्ध्वनियाँ
जुग-जुग का अनबोला,
रिमझिम-रिमझिम
नेहा
गलबहियों का
हार,
पुरइन पात
दुलारती
पुरवा चली
बयार।
नाची
नैना-जोगिन
होशमंद दीवाने ,
छलकी
अनहद हाला
दरियादिल पैमाने,
जोगिया
हुई महफ़िल
हाल में दीदार,
चन्दन-चिता
सजाओ रे,
आपुन मरन-त्यौहार।
(आजकल, नवम्बर, 1998)