भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आपे राँझा होई / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
राँझा राँझा करदी नी मैं,
आपे राँझा होई।
सद्दो नी मैनूँ धीदो राँझा,
हीर ना आखो कोई।
राँझा मैं विच्च मैं राँझे विच्च,
मैं नहीं ओह आप है आपणी,
आप करे दिलजोई।
राँझा राँझा करदी नी मैं,
आपे राँझा होई।
हत्थ खून्डी मेरे अग्गे,
मंगू मोढे भूरा लोई।
बुल्ला हीर सलेटी वेखो,
कित्थे जा खलोई।
राँझा राँझा करदी नी मैं,
आपे राँझा होई।
सद्दो नी मैंनूँ धीदो राँझा,
हीर ना आखो कोई।
शब्दार्थ
<references/>