भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आप किस बात पे मगरूर हो गये / मोहम्मद इरशाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आप किस बात पे मगरूर हो गये
रफता-रफता हमसे बहुत दूर हो गये

चन्द रोज़ के सफर में वो बे से बा हुए
यानी की बेशऊर बाशऊर हो गये

कल तक तो जी रहे थे गुमनाम ज़िन्दगी
क्या किया कि आज वो मशहूर हो गये

जो लोग दूसरों की तरक्की से जलते हैं
ऐसों के चेहरे देखो तो बेनूर हो गये

‘इरशाद’ मुहब्बत से जो मिलते नहीं कभी
हमसे वो और उनसे हम दूर हो गये