आप की याद आपका ग़म है 
ज़िन्दगी के लिए ये क्या कम है
ऐ मता-ए-सुकूं के दीवानों! 
ज़िन्दगी इज्ताराबे-पैहम है 
एक लग्ज़िश में सज गई दुनिया 
क्या मुक़द्दस गुनाहे-आदम है 
इन दिनों कुछ अजीब आलम है
हर नफस एक महशरे-ग़म है
आज खुल कर न रो सकी शबनम 
आज फूलों में ताज़गी कम है 
आज तक उसकी उलझनें न गयीं 
ज़िन्दगी किसकी ज़ुल्फ़े-पुरखम है 
इन दिनों कुछ अजीब आलम है 
हर नफ़स एक महसरे-ग़म है 
ज़िन्दगी तो नहीं 'हफ़ीज़' कहीं 
अब फ़क़त ज़िन्दगी का मातम है