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आप क्यों खोए खोए लगते हैं / चन्द्र त्रिखा

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आप क्यों खोए-खोए लगते हैं
रात भर रोए-रोए लगते हैं

इन दरख़्तों से ज़हर टपके है
ज़हर के बीज बोए लगते हैं

रोशनी राशनों में मिलती है
आप कुछ सोए-सोए लगते हैं

चांदनी काल-गर्ल बन बैठी
चांद जी खोए-खोए लगते हैं

भीड़ में जो पिछड़ गए उनके
चेहरे अश्कों से धोए लगते हैं