आबहु जागू हे राष्ट्रपुत्र / शम्भुनाथ मिश्र
छी किए सड़कपर बैसि गेल
अछि दूर बहुत चलबाक
किन्तु की बिसरि गेल छी बाट अपन?
अछि कोन दिशा जयबाक
भेल अछि आच्छादित घनगर कुहेस।
चारु भर चारु दिशा व्याप्त
नहि सूझि रहल अछि बाट,
हृदयमे व्याप्त चेतना करइत अछि चीत्कार,
कहय सब थिक विदेह केर भूमि
जतय राजर्षि जनक, ब्रह्मज्ञानीमे
दिग्दिगन्त प्रख्यात रहथि
विद्वत्ता आ पाण्डित्यकेर ओ ध्वजा छलै सबसँ ऊपर
छै अग्निकेर जे रंग कहाबय केसरिया,
अछि दैत अपन सन्देश विश्वकेँ एखनहुँ धरि
लहरैत हृदयमे वैह आगि जँ रहत,
तखन नहि हैब अहाँ निस्तेज
हृदयपर पड़ल छाउरकेर परत जैत उधिआय,
सतत सोचब, चेतब, यदि बुझब थिकहुँ हम
ओहि भूमिकेर पुत्र, जतय नचिकेता सन नर-रत्न
कयल यमराजहुँकेँ प्रतिबद्ध।
छली सावित्री सन पतिव्रता,
लेलनि जे कठिन तपस्या बलेँ अपन पतिकेर प्राण पलटाय
बाबा छलाह हाथी रखैत तेँ सिक्कड़ लऽ छी घूमि रहल
से कतबा दिन घूमैत रहब,
छै आबि गेल युग वायुयान, कम्प्यूटर, सेलुलर फोन सभक,
तेँ नहि आओत ओ काज मोट लोहा सिक्कड़,
ओ थीक प्रतीक ताहि बातक जे
छलै जखन हाथीकेर युग तँ ओकरे छलै प्रभुत्व,
लोक भय मटोमाट जाइत छल कोनहुँ गाम,
कहै छल फल्लाँ बाबू अयला अछि हाथीपर चढ़ि,
नहि आब ओकर छै समय,
आइ जँ हाथीपर चढ़ि जाइ कतहु कुटुमारयमे
तँ लोक देखि बाजत आ कहतै हाथी यैह थिकैक,
जाहिपर चढ़ल लोककेँ सब कहैत छै महथबार,
सम्भवतः कोनो सर्कस अपन इलाकामे छौ ऐल
देख ने हाथीपर चढ़ि छैक सगर बौआय रहल,
अछि यैह बुझाबक लेल लोक देखओ सर्कस।
क्यौ नहि बूझत जे ई तँ छथि बड़का धनाढ्य
जे अयला अछि दरबज्जापर
सब यैह बुझत छै काज कोनो नहि,
तेँ सगरो ढहनाय रहल अछि
रहितै कोनो तखन पलखति नहि एकरा भऽ पबितै
छै समय-समयकेर बात जखन ओकरे छलैक सम्मान
आइ यदि कुकुर भुकाबक इच्छा हो तँ,
हाथीपर चढ़ि करु भ्रमण,
के टोकत गऽ,
यदि अपन महिँस कुड़हरिये नाथब, नाथू गऽ
नहि मतलब छैक तेहल्लाकेँ,
सब अपन-अपन मरजीक बनल अपने मालिक,
ककरो छै इच्छा बहुकेँ अछि भौजी कहैत,
से कहओ, मुदा जँ करबै नहि किछु राष्ट्र लेल
तँ देत किए मोजर समाज?
मूल्यांकन करबा काल लोक देखत
पूछत जे, की कयलहुँ अपना समाज आ राष्ट्र लेल?
छनि कोन क्षेत्रमे योगदान?
कयने छथि वा नहि छथि कयने?
छी नहि कयने तँ तितल बिलाड़ि भेल अपने
अप्पन धुरखुर नोचैत रहू,
के टोकत गऽ?
के पूछत गऽ?
क्यौ नहि टोकत, क्यौ नहि पूछत,
छी छाउर थिकहुँ किंवा विभूति,
से निर्णय करत समाज मुदा
अपना समाज आ राष्ट्र लेल
अपने मन मिट्ठू बनि कहबै जे
छी विभूति अपना समाज आ राष्ट्रकेर,
मस्तकपर नहि क्यौ लगा रहल
तँ नहि होयत से कहलासँ
छै बेर गेल से आबि लोकसब
हूथि बकानि पिआय देत
जँ करब अपन अधिकारकेर अनुचित प्रयोग,
तेँ सावधान भय उठू-उठू हे राष्ट्र पुत्र!
हे शक्ति पुत्र!
छोड़ सिक्कड़केर बात
करु अन्वेशण-अनुसन्धान
जाहिसँ होय राष्ट्र-निर्माण,
करू पुनि पोखरन पुनरावृत्ति
होथि सुनि भारतवासी तृप्त
विश्वमे पुरुषार्थक परिभाषा बदलल अन्तरिक्ष विस्फोट
सूनि कय फनता सकल विरोधी करता अपने ढंगे चोट
काज करबामे नहि घबराइ,
मीलि कऽ आपसमे सब भाइ
बनाबी एकजूटता आइ,
जेना हो गाँथल माला पूर्ण
देखाबी अपन शक्ति सम्पूर्ण
करी सुस्थापित ई आदर्श अपन मालाकेँ ओहि सुमेरु जकाँ
जकरापर नजरि पड़ैत कहय सब यैह थिकैक सुमेरु
जकर छै अहम भूमिका मालाकेर पूर्णतामे।
आबहु जागू हे राष्ट्रपुत्र।